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                      गरीबी से छुटकारा कैसे पायें ? 

आप एक छोटी झोपड़ी में रहते हैं और चाहते हैं कि कोई बढ़िया वाला मकान मिल जाये। आपकी इच्छा को ईश्वर अवश्य पूर्ण करेंगे, परन्‍तु आपको यह साबित करना होगा कि आप मकान प्राप्त करने के अधिकारी हैं। अपनी आज की छोटी झोपड़ी को इतनी साफ-सुथरी सुंदर चित्ताकर्षक बनाओ जितना कि बना सकते हो। परवाह नहीं कि सजावट की बढ़िया चीजें खरीदने के लिए पैसा नहीं है। संसार में सजावट का इतना अधिक सामान भरा पड़ा है, जिसकी कोई सीमा नहीं और जो हर गरीब अमीर को मुफ्त मिलता है। सुंदरता की तलाश करो, अपने दृष्टिकोण को सौंदर्यमय बनाओ, अनगिनत साधन अपने आप सामने आकर खड़े हो जाएंगे। जो उस झोपड़ी को बढ़िया महल सा सुंदर बना सकते हैं। पहले अपनी मनोवृति को बढ़िया बनाओ, तो मकान भी तुम्हें बढ़िया मिल जाएगा। आज अपनी झोपड़ी को सड़ी-गली, मैंली-कुचैली, गंदी बनाए हुए हो तो किस मुँह से कहते हो कि हमें रहने के लिए बढ़िया मकान चाहिए। क्या परमात्मा ऐसे आलसियों को महल प्रदान  करेगा जो अपनी झोपड़ी साफ-सुथरी नहीं रख सकते। एक धर्मशाला में बहुत से लोग ठहरे थे उनमें से कुछ  तो बड़े खुश थे और कुछ अनपढ़। शिक्षत लोगों ने अपने कमरे को साफ सुथरा रखा और अशिक्षितों ने गंदगी फैला दी।       धर्मशाला का मालिक निरीक्षण करने आया तो उसने प्रसन्नतापूर्वक  सुशिक्षतों को और भी बढ़िया स्थान रहने के लिए दे दिया। किंतु फूहड़ों पर बहुत नाराज हुआ। दयालू स्वभाव होने के कारण उसने उन्हें बिल्कुल निकाला तो नहीं पर उन्हें छोटे गंदे और टूटे-फूटे कमरों में रहने के लिए भेज दिया, जिनमें कि ऐसे ही लोगों को अक्सर ठहराया जाता था दरिद्रता एक दंड है जो प्रकट करती है कि यह मनुष्य अपने कर्तव्य की उपेक्षा करने एवं फूहड़ता की आदतों से घिरा हुआ है।        आत्मविश्वास द्वारा समृद्धि प्राप्त करने के स्थान पर जो हीन मनोवृति स्वीकार करके दीनता लेना पसंद करता है उसे वही वस्तु दे देते हैं। अपनी इच्छा अनुसार जो जिसे चाहता है, पसंद कर लेता है

क्या आप को दरिद्रता ने अपनी जंजीरों से जकड़ा हुआ हैं ? आप अपने को इन जंजीरों से बाहर निकलने में असहाय समझते हैं ? यदि ऐसा है तो निश्चित ही आप अपने दुर्भाग्य पर रोते होंगे और इन दुखद परिस्थितियों के लिए भाग्य को, ईश्वर को या अन्य मनुष्य को दोषी ठहराते होंगे आप सोचते होंगे कि ईश्वर और उसका संसार कितना अन्यायी है जो किसी को विपुल संपदा देता है और किसी को दरिद्रता में आंसू बहाने के लिए छोड़ देता है। यदि आप ऐसी बातें सोचते हैं तो निसंदेह एक बड़ी भूल करते हैं। आपकी दरिद्रता या विपत्ति का कारण उनमें से एक भी नहीं है, जिन्हें कि आप दोषी कह  रहे हैं। आप खुद विचारपूर्वक देखिए इन अप्रिय परिस्थितियों के बीज आपके अंदर छिपे हुए मिलेंगें। दूसरों को दोष देना और कायरों के तरह रोना, घबराना यह बातें प्रमाणित करती हैं कि आपको दरिद्रता में ही पड़ा रहना चाहिए और उससे भी अधिक दुख भोगना चाहिए, जितना कि इस समय भोग रहे हैं। आत्मविश्वास करना, अपने ऊपर भरोसा रखना, बढ़ने के लिए प्रयत्न करना वह गुण है जो हर उन्नतशील मनुष्य में होते हैं। चिंता करना, दुखी रहना, दूसरों को दोष देना, यह एक प्रकार के आत्मसंहार है। क्या कोई भी आत्महत्यारा रात के अंधकार को हटाकर सुख का प्रकाश प्राप्त करने में अब तक   समफ हुआ है।

‘निर्धनता से मनुष्य को लज्‍जा आती है, लज्जा से पराक्रम नष्ट हो जाता है, पराक्रम नष्‍ट हो जोन पर अपमान होता है, अपमान से दुख होता है, दुख से शोक होता है, शोक से बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि के ना रहने से मनुष्य का नाश हो जाता है। सच है कि निर्धनता अब विपत्ति की जड़ है।‘  -एक महापुरूष

उठो दरिद्रता के विचारों को हटाकर एक तरफ फेंक दो। मत सोचो कि हम गरीब रहने के लिए पैदा हुए हैं। अपने दिल को अमीर बनाओ, फिर बाहर की समस्याएं बदलने में भी देर नहीं लगेगी। विश्वास करो कि हमारे पास जितनी कुछ योग्यता है, उसी का अच्छे से अच्छा उपयोग कर सकते हैं। छोटे कामों की उपेक्षा करके बड़े काम प्राप्त नहीं किए जा सकते हैं, इसलिए यदि उत्तम स्थिति चाहते हो तो वर्तमान स्थिति का सबसे अच्छा उपयोग करके यह साबित कर दो कि हम बड़ी संपदा के अधिकारी हैं। पहली कक्षा की पढ़ाई की उपेक्षा करके जो दसवीं कक्षा का पाठ याद करना चाहता है वह एक गलत बात सोचता है। यदि वह ऐसा प्रयत्न करेगा तो असफलता ही प्राप्त करेगा। कदाचित किसी प्रकार बड़ी कक्षा की पुस्तकें प्राप्त कर भी लो तो उससे वह छीन ली जाएगी। प्रकृति का यह नियम है कि जो अपनी प्राप्त वस्तुओं का सदुपयोग करता है तो उसे वह अधिकाधिक दे दी जाती है, और जो उपेक्षा से काम लेता है उससे वह वस्तु छीन ली जाती है। दुखद परिस्थितियों में पड़कर जब आप रोते हैं और कर्तव्यही होकर बैठ जाते हैं, तो बिल्कुल आप यह साबित करते हैं कि हम ठीक इसी स्थिति के   अधिकारी हैं, जो आज प्राप्त हो रही है।

निश्चित ही दरिद्रता एक स्वाभाविक वस्तु है। आत्मा ऐश्वर्यशाली है, उसके साथ जनता का भला क्या सम्‍भव हो सकता है।  परमात्मा की कदापि ऐसी इच्छा नहीं हो सकती कि उसका पुत्र दीनता और दरिद्रता में जीवन यापन करें। मनुष्य को रोटी-कपड़े की चिंता में ही उलझे रहने के लिए नहीं वरन किसी महान उद्देश्य के लिए इस संसार में भेजा गया है। हम जब तक दरिद्रता में बंधे रहते हैं, तब तक ना तो कोई महत्व का काम कर सकते हैं और ना अपनी शक्तियों का ठीक प्रकार विकास कर सकते हैं। भूखा मनुष्य कैसे अपने शरीर और मस्तिष्क को सुव्यवस्थित रख सकता है। आनंद और आशा का नाश करने वाली यह स्वभाविक परिस्थित, ना केवल उन्नति का मार्ग अवरुद्ध करती है वरन् अनेक बुराइयों को जन्म देती है, एवं प्रेम के स्थान पर कलह और आनंद के स्थान पर दुख पहुँचाती है। कई बार तो वह मनुष्य को नहीं रहने देती और अपमान, अभाव, लांछन, ग्‍लानि आदि के द्वारा आत्महत्या जैसी दुखद घटनाएं उपस्थित करती हैं। ना जाने कितनी असंख्य जीवन इसकी चक्की में पिसकर बर्बाद हो चुके हैं। संसार में दरिद्रता से बढ़कर कष्टदायक और बचने योग्य वस्तु दूसरी नहीं है। यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि मनुष्य जीवन का ताना-बाना इस प्रकार बुना गया है, कि सुख पूर्वक जीवन व्यतीत किया जा सके, प्रभु की इच्छा है कि हम आनंद में परिस्थितियों का उपयोग करें। जब कभी इसके विपरीत अवस्था उत्पन्न हो और दरिद्रता आ जाये, तो समझना चाहिए कि हमारे अंदर कुछ विकार पैदा हुआ है, हम रास्ता भूल रहे हैं, और राजमार्ग को छोड़कर झाड़-झंखाड़ में भटक गए हैं। यदि आप दरिद्र अवस्था में  आ चुके हैं तो ठहरे और विचार कीजिए कि हमारे अंत:करण ने किन दुष्‍वृत्तियों को अपना लिया है, जिनके कारण दरिद्रता भोगना पड़ रहा है।

यदि कोई ऐसे दैवी कारण उपस्थित हो जाएं, जिनके कारण दरिद्रता अनिवार्य हो तो उसमें बेज्जती की बात नहीं है।   शारीरिक असमर्थता या किसी अपरिहार्य कारणों से जो लोग गरीब हो जाते हैं, दुनिया उनसे घृणा नहीं करती बल्‍की उन पर दया करके सहायता करती है। असल में बेज्जती की बात तो यह है कि हाथ पांव और बुद्धि होते हुए भी अभावों के कारण   कष्ट भोगे। निसंदेह दरिद्रता का कारण दुर्बुद्धि है। आलस में समय गंवाना, निराशा में पड़े रहना, अपना स्वभाव अप्रिय   बना लेना, काम से ही जी चुराना, छोटा काम करने में बेज्जती समझना, स्थिति से अधिक खर्च करना, वे दुर्गुण हैं जो   कुबेर को भी दरिद्र बना सकते हैं। यदि आप दरिद्र हैं तो यह सब या इनमें से थोड़े बहुत दुर्गुण अवश्य घर किए होंगे।  आप समझते होंगे यह दोष छोटे हैं, इनके लिए दरिद्रता जैसा कठोर दंड मिलना चाहिए ? पर जब विचारपूर्वक देखा जाता है तो   प्रतीत होता है, कि यह आदतें छोटी नहीं बड़ी भयंकर है, और दारूण पापों को उत्पन्न करने वाली हैं। झूठ, छल, अनाचार, चोरी, हिंसा, हत्या जैसे दुष्‍ट कर्मों को  कोई मनुष्य नहीं करना चाहता, पर यही चीजें है जो मनुष्य को दुष्कर्म करने के लिए   मजबूर करती है। हमारा मत है कि चोरी और हत्या के समान ही आलस्य, अकर्मण्यता, फजूल खर्ची आदि दोष हैं, और इन पापों के परिणाम स्वरुप, जीते जी नरक की आग में झुलसना पड़ता है। यह कहने में कुछ भी मिथ्‍या बात नहीं है कि   दरिद्री नर्क भोग रहा है। यदि ऐसे नार‍कीय व्यक्ति को संसार दुतकारत है और घृणा की दृष्टि से देखता है तो इसमें कुछ भी अनुचित बात नहीं है।

  एक भले आदमी को शर्म करना चाहिए कि वह गरीबी में जकड़ा हुआ है, जबकि दरिद्रता को हटाना हमारे अपने हाथ में है, तो क्यों नहीं उसे दूर करना चाहिए ? कहते है कि दरिद्रों की कोई मदद नहीं करता, वे इसी के पात्र हैं कि उनकी कोई मदद ना करें। हम जब अपने चारों ओर दृष्टि पसारकर देखते हैं तो दरिद्रता के भीषण दृश्य दिखाई देते हैं। पीले और पिचके हुए  मुँह वाले नवयुवक जिनका शारीरिक स्वास्थ्य नष्ट हो चुका है, बेढंगे जीवन के भार से कराहते हुए दृष्टिगोचर होते हैं।   बेशक, इसमें शासन व्यवस्था की बड़ी भारी जिम्मेदारी है, फिर भी स्वयं वे नवयुवक भी निर्दोष नहीं है। इसमें से अधिकांश के मनों के भीतरी परदे पर यह विश्वास भली-भांति जड़ जमा कर बैठ गया है, की गरीबी से हमारा पीछा नहीं छूट सकता। वह सोचते हैं कि जो भाग्य में लिखा होगा, सो होगा। यदि हमारे भाग्य में धनी होना  होता तो किसी अमीर के घर में जन्म लेते। जब भी व्यापार की ओर दृष्टि दौड़ते हैं तो उन्हें सबसे पहले यह सिद्धांत याद आता है, कि पैसे को पैसा कमाता है। जब हमारे पास पैसा नहीं है तो धनवान कैसे बन सकते हैं। वह अपनी योग्यता पर से विश्वास गवा देते हैं और देखते हैं कि हमारे लिए कोई काम नहीं है, हमें तो इसी कष्ट में पड़ा रहना पड़ेगा। अपने ऊपर से विश्वास उठा लेना, निराश हो बैठना, उद्योग को तिलांजलि दे देना, ऐसे ही कारण हैं जिनके साथ दरिद्रता दृढ़तापूर्वक बंधी हुई है।

दारिद्र्य इतनी बुरी नहीं है जितनी कि उसके विचार। हम तूच्छ हैं, हमें तो गरीब रहना है, हम क्या कर सकते हैं, इस    प्रकार के विचार मानो अपने आपको दरिद्रता के बंधन में आबद्ध करना है। जो अपने को  भिखारी समझता है, वह अपने विश्वासों के आधार पर जीवन भर वैसा ही बना रहेगा। उनके लिए शुभ दिन कभी ना आयेगा। यदि आप सोचते रहे कि    समय बड़ा खराब है, तो हमारी दशा बिगड़ती ही जाएगी। इसलिए विश्वास रखिए कि समय खराब हो या ना हो आपके लिए अवश्य खराब होगा, और आप की दशा बिगड़ जाएगी। विचारों में एक बड़ी भारी चुंबक शक्ति भी होती है। मन में रहने वाली बात अपने आकर्षण द्वारा अनंत आकाश में से ऐसे तत्वों को अपनी ओर आकर्षित करती है, जो उसको बल देते हैं, देखा गया है कि भय की कल्पना करने वालों के समक्ष वो भव साक्षात आकर खड़ा हो जाता है। प्रकृति का भंडार हमारे लिए खुला हुआ है, जो जिसको चाहता है, अपनी इच्छा अनुसार चाहे जितना ले सकता है। यदि आप दीनता के विचार निरंतर   करते रहते हैं तो वह आपका इष्टदेव बन जाएगी और प्रसन्न होकर आपके चारों ओर घेरा डाल कर बैठ जाएगी। जो पश्चिम की ओर मुंह करके चल रहा है उसको यह आशा ना करनी चाहिए कि वह पूर्व में जा पहुंचेगा। दरिद्र मनोवृति के व्यक्ति   समृद्धि को प्राप्त नहीं कर सकेंगे।

  एक व्यक्ति का हीरे का कंठा खो गया, उसने समझा किसी ने चुरा लिया है। उसकी शेष संपत्ति भी थोड़े दिनों में समाप्त हो गई और वह 2-4 आने रोज की मजदूरी करने लगा। इस समय दरिद्रता से उसे बड़ा कष्ट हो रहा था एक बार फटे हुए कुर्ते पर हाथ गया तो उसे मालूम हुआ कि कंठा तो गले में पड़ा हुआ है। पूरी दरिद्रता के समय भी लाखों रुपए का कंठा साथ रहा परंतु वह व्यक्ति उसे भूल गया था और कष्ट भोग रहा था। दक्षिण में गोलकुंडा नामक स्थान पर हीरो की प्रसिद्ध खान है, यह स्थान पहले अली हाफिज नामक पारसी के पास थी। उसे एक हीरे की जरूरत थी इसके लिए उसने उस भूमि को बेंच   दिया और बाजार से एक हीरा लाला। उसे क्या पता था कि जिस भूमि को मैं बेंच रहा हूँ, उसमें बहुमूल्य हीरो का खजाना भरा पड़ा है। नेवड़ा की सबसे मूल्यवान सोने की खान को उसके मालिक ने एक व्यक्ति के हाथों 500 रूपये में बेचा था। यदि वह जानता होता तो ऐसा ना करता। मनुष्य में उर्पाजन और संचय करने की बड़ी भारी शक्ति छिपी हुई है। पर वह उसे जान नहीं पाता और उपरोक्‍त उदाहरणों का अनुकरण करता है। आकाश मंडल में विद्युत शक्ति का भंडार पृथ्वी के आदि से ही छिपा पड़ा है, पर वह मिला तब जब मनुष्य उसे ढूँढ निकालने को तत्पर हो गया। आपके अंदर ऐसी ऐसी योग्यताएं भरी हुई है जो बहुत थोड़े समय में मनोकामनाएं पूर्ण कर सकती हैं। वे प्रतीक्षा कर रही हैं कि अहिल्या की जड़ शिला की तरह हमें कोई राम मृतक से जीवित कर दे। क्या आप उन्हें जीवित नहीं करेंगे ? मत सोचिए कि हम गरीब हैं, इसलिए क्या कर सकते हैं, मत कहिए कि हमारी योग्‍यता तुच्‍छ है, इसलिए कुछ कर ना सकेंगे। संसार में अद्भुत और आश्चर्यजनक      आविष्कार करने वाले मनुष्य गरीब ही थे।

 


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It is not a topic, it is story, post it as article.

Such a nice article. You have answered everything, nothing to say more. If whatever you have written is yourself then you are a very mature person.

I think you should adhere to English as most of the users might not understand Hindi so well.

Population control and Education are two most important tool to eradicate poverty if they are implemented well.


I am open to experience what life's mystery bag holds for me

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Arunima Singh wrote:

I think you should adhere to English as most of the users might not understand Hindi so well.

Population control and Education are two most important tool to eradicate poverty if they are implemented well.

If peoples are educated, problem of population will solved it self.

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