सफर
सफर
सफर का कारवां बढ़ता रहा
समय का सफर भी गतिशील सा था
तन्हाइयों ने रास्ते में कंकड बो दिए थे
रेगिस्तान की रेत सी जल रही थी वह
पर उसका वहां पहुंच पाना मयस्सर ना हुआ
वह उसके जज्बातों में घुलमिल गया था
उसकी बातों की टकराहट में भी उसी का नाम गूंजता रहा एक सामान्य से सफर में जब से वह उसके साथ मिली उसका वह सफर जिंदगी का सफर बन गया
जो हमसफर के साथ मंजिल की ओर बढ़ रहा था
कठिन हालातों में भी वह उसी की यादों के सहारे जीता रहा एक उत्साही नाम था वह
सुनते ही शरीर में ऊर्जा की लहर सी दौड़ जाती थी
उसके साथ रहते हुए मिला वह अनुभव
एक रहस्यमई संग्रह बन गया था उसके लिए
जिसे खोने के अहसास भर से वह सिहर उठता था
इन्हीं ख्यालों में खोया हुआ सफर आगे बढ़ रहा था
एक रोज मंजिल भी हासिल हुई उसे
मगर उसके साथ नहीं उसकी यादों के सहारे
जो मात्र कल्पना थी उस सफर के लिए
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