Latin Name - Morning Oleifera
Family - Moringaceae
 
संस्कृत  - शोभाजन, शिग्रु, तिक्षन्गंधा, मोचक
हिंदी - सहिजन, सहन्जना
पंजाबी - सोहंजना
मराठी - शेगडा
तेलगु - मुंगा

English - Horse Radish Tree, Drum Stick Plant

परिचय:

यह शुष्क जगह पर पाया जाता है। यह तेजी से बदने वाला पोधा है। यह लगभग 10-12 मीटर ऊँचा होता है। भारत में सर्वत्र पाया जाता है।

प्त्र:

संयुक्त 1-2 फुट लम्बा होता है इसमें पत्रक 6-9 जोड़े, 1/4 इंच से पौना इंच लम्बे, अंडाकार, अभिमुख क्रम में होते है। इसके पत्ते पोषक गुणों से भरपूर होते है। इनमे विटामिन सी, प्रोटीन, लौह तथा पोटैशियम, बीटा केरोटीन प्रचुर मात्रा में होता है। इन्हें पालक की तरह पका कर खाया जा सकता है।

पुष्प:

इसमें सफ़ेद और हल्के गुलाबी रंग के सुगन्धित फूल होते है।
फल : 6-18 इंच लम्बी फलियां होती है जिनमे 6 सिराए होती है।

बीज :

त्रिकोने व परनुमा होते है। इसके बीज से तेल निकला जाता है। जिसे बेन कहा जाता है। यह स्वच्छ, वर्ण रहित और गाढ़ा होता है।
जनवरी से मार्च तक पुष्प और अप्रैल से जून मास में फल लगते है। लेकिन पुष्पीकरण तथा फल लगने की क्रिया सारा साल चलती रहती है। इस पेड़ से एक प्रकार का गोंद निकलता है। यह डाई बनाने एवं दवाई के रूप में प्रयोग किया जाता है।

आमतौर पर फूल और फल दोनों सब्जी, आचार बनाने के लिए उपयोग किये जाते है।
सहिजन के पौधे को वर्षा ऋतू में बीज या पेड़ के तने की कटिंग द्वारा लगाया जाता है।

विशेष:

यह कड़वा व मीठा दो प्रकार का होता है। सफ़ेद फूलो वाला कड़वा होता है और लालिमा रंग के फूलो वाला मीठा होता है।

गुण : लघु, रुक्ष, तीक्षण
रस : कटु (क्षारीय), तिक्त
वीर्य : उषण
विपाक : कटु

खोजो के अनुसार पत्ते पोषक तत्वों के भंडार है। इनमे विटामिन सी संतरे से सात गुना, कैल्शियम दूध से चार गुना, विटामिन ए  गाजर से चार गुना, प्रोटीन दूध से दो गुना तथा पोटैशियम केले से तीन गुना होता है।

उपयोग:

  • त्वचा रोग : सहिजन की जड़ की छाल को पीस कर सरसों के तेल में पका ले। इस तेल को खाज-खुजली, घाव और सूजन पर लगाने से आराम मिलता है।
  • मुखपाक (छाले) : मुंह में छाले होने पर इस की जड़ के छोटे -2 टुकड़े कर के चार कप पानी में डाल कर उबाले। जब पानी 2 कप बचे तब उतार कर छान ले व गुनगुना गरम रहे तब इस से गरारे करे। इस से मुंह के छाले, गले की खराश और स्वर भंग में आराम होता है।
  • मूत्र कृस्छ : सोहंजने के फूलो को उबाल कर चाय की तरह पीने से मूत्र सम्बन्धी रोग ठीक होते है।  
  • मोटापा : फूलो को उबाल कर इस का पानी पीने से मोटापा कम होता है।
  • गठिया : इस के बीजो का तेल पुरानी गठिया, जोड़ो के दर्द व शोथ के लिए बहुत लाभकारी है। इस तेल से मालिश करने में आराम होता है।
    इस की ताज़ी जड़, अदरक और सरसों के दाने तीनो सामान मात्रा में ले कर पीस ले और लेप बनाकर गठिया से पीड़ित जोड़ो पर लेप लगाये। इससे दर्द दूर होता है। इस के गोंद का लेप या बीजो को पीस कर लेप लगाने से भी दर्द दूर होता है।

सावधानी:

अत्यंत गुणकारी होने के साथ ही यह दाहकारी भी होता है। अत: इस की मात्रा 6 ग्राम से कम रखे और साथ में तेल या पानी की मात्रा ज्यादा रखे ताकि लेप पतला रहे। इसका लेप ज्यादा देर तक लगा हुआ न रहने दे। पित प्रकृति के या पित्त प्रकोप से पीड़ित व्यक्ति इसका प्रयोग न करे। इसे प्रयोग करने से उत्पन्न दोष के निवारण के लिए शुद्ध घी और दूध का सेवन करना चाहिए।
सहन्जना का 250 ग्राम गोंद ले कर उसे घी में तल ले फिर आधा किलो गेहू का आता घी में भुन ले। 50 ग्राम सौंठ पीसी हुई लेकर सब को मिलाकर 10-10 ग्राम के लड्डू बना ले। इससे सर्दी, वात रोग, जोड़ो के दर्द आदि रोग दूर होते है।

अरुचि: सहिजन के फूलो की सब्जी बनाकर खाने से भोजन में अरुचि ख़त्म होती है और पाचन शक्ति का विकास होता है।
अफारा: सहिजन की छाल 20 ग्राम, चुटकी भर हींग, एक काली मिर्च को उबाल कर पीने से पेट का अफारा ठीक होता है।
आंत्रक्रिमी : इस की फलियों की सब्जी बना कर खाने से पेट के कीड़े मर जाते है।
श्वास (दमा) :  सहिजन की छाल और अदरक को उबाल कर पीने से दमा रोग ठीक होता है।
लकवा : वातज ओषधियाँ जैसे नाड़ी दोर्बलये, पक्षाघात और लकवा में इस की छाल 20 ग्राम को उबाल कर दिन में तीन बार पिलाते है।
नेत्र रोग: इस के बीजो का अंजन बना कर लगाने से नेत्र रोगों में आराम मिलता है। पत्रों के स्वरस में शहद को मिलाकर डालने से नेत्र रोग ठीक होते है।

यह प्रकृति की एक अनुपम देन है जो कि  औषधीय गुणों से भरपूर है।


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